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यन्नीक्ष॑णं मां॒स्पच॑न्या उ॒खाया॒ या पात्रा॑णि यू॒ष्ण आ॒सेच॑नानि। ऊ॒ष्म॒ण्या॑पि॒धाना॑ चरू॒णाम॒ङ्काः सू॒नाः परि॑ भूष॒न्त्यश्व॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yan nīkṣaṇam mām̐spacanyā ukhāyā yā pātrāṇi yūṣṇa āsecanāni | ūṣmaṇyāpidhānā carūṇām aṅkāḥ sūnāḥ pari bhūṣanty aśvam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। नि॒ऽईक्ष॑णम्। मां॒स्पच॑न्याः। उ॒खायाः॑। या। पात्रा॑णि। यू॒ष्णः। आ॒ऽसेच॑नानि। ऊ॒ष्म॒ण्या॑। अ॒पि॒ऽधाना॑। च॒रू॒णाम्। अ॒ङ्काः। सू॒नाः। परि॑। भू॒ष॒न्ति॒। अश्व॑म् ॥ १.१६२.१३

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:162» मन्त्र:13 | अष्टक:2» अध्याय:3» वर्ग:9» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:22» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो (मांस्पचन्याः) मांसाहारी जिसमें मांस पकाते हैं उस (उखायाः) पाक सिद्ध करनेवाली बटलोई का (नीक्षणम्) निरन्तर देखना करते उसमें वैमनस्य कर (या) जो (यूष्णः) रस के (आसेचनानि) अच्छे प्रकार सेचन के आधार वा (पात्राणि) पात्र वा (ऊष्मण्या) गरमपन उत्तम पदार्थ (अपिधाना) बटलोइयों के मुख ढापने की ढकनियाँ (चरूणाम्) अन्न आदि के पकाने के आधार बटलोई कड़ाही आदि वर्त्तनों के (अङ्काः) लक्षण हैं उनको अच्छे जानते और (अश्वम्) घोड़े को (परिभूषन्ति) सुशोभित करते हैं वे (सूनाः) प्रत्येक काम में प्रेरित होते हैं ॥ १३ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य मांसादि के पकाने के दोष से रहित बटलोई के धरने, जल आदि उस में छोड़ने, अग्नि को जलाने और उसको ढकनों से ढाँपने को जानते हैं, वे पाकविद्या में कुशल होते हैं। जो घोड़ा को अच्छा सिखा उनको सुशोभित कर चलाते हैं, वे सुख से मार्ग को जाते हैं ॥ १३ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

यद्ये मांस्पचन्या उखाया नीक्षणं कुर्वन्ति तत्र वैमनस्यं कृत्वा या यूष्ण आसेचनानि पात्राण्यूष्मण्याऽपिधाना चरूणामङ्काः सन्ति तान् सुष्ठु जानन्ति। अश्वं परिभूषन्ति च ते सूना जायन्ते ॥ १३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) ये (नीक्षणम्) निरन्तरं च तदीक्षणं च नीक्षणाम् (मांस्पचन्याः) मांसानि पचन्ति यस्यां सा। अत्र मांसस्य पचयुड्घञोरित्यन्तलोपः। (उखायाः) पाकसाधिकायाः (या) यानि (पात्राणि) (यूष्णः) रसस्य (आसेचनानि) समन्तात् सेचनाऽधिकरणानि (ऊष्मण्या) ऊष्मसु साधूनि (अपिधाना) अपिधानानि मुखाच्छादनानि (चरूणाम्) अन्नादिपचनाधाराणाम् (अङ्काः) लक्षणानि (सूनाः) प्रेरिताः (परि) (भूषन्ति) (अश्वम्) तुरङ्गम् ॥ १३ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या मांसादिपचनदोषरहितां पाकस्थालीं धर्त्तुं जलादिमासेचितुमग्निं प्रज्वालयितुं पात्रैराच्छादितुं जानन्ति ते पाकविद्यायां कुशला भवन्ति। येऽश्वान् सुशिक्ष्य परिभूष्य चालयन्ति ते सुखेनाध्वानं यान्ति ॥ १३ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे मांस इत्यादी न शिजविलेल्या पातेल्यात पाणी घालून अग्नी प्रज्वलित करून त्यावर झाकण ठेवतात ती पाकविद्येत कुशल असतात व जी घोड्याला प्रशिक्षित करून त्यांना सुशोभित करून चालवितात ते सुखाच्या मार्गाने चालतात. ॥ १३ ॥